Saturday, 12 January 2013

ॐ साई राम

ye kuch sabad hain us ladky ke jo delhi main habas ka sikar hui




Damni Or Uski Maa___
Damini's last
words..........

"maa me abhi jeena chahti hu...
tere sath waqt bitana chahti hu...
mitti ka khilona nahi h ladkiya...
yahi baat m sabko samjhna chahti hu...
aksar kehte hai log har kisi par bhagwan ka hath hota hai...
fir kyo bhagwan k hath k niche ladkiyo ka ye anjaam hota hai...
jaa rahi hu aaj me tum sabko chodd kar...
phir na aaungi kabhi kisi ki beti bankar...
maa ka ek sapna tha ek din beti ke liye rajkumar aayega...
doli me baitha kar use le jayega...
khadi hokar sapne tutate dekhegi wo...
jab bhai mujhe kandhe par le jayega...
maa mai tere sath rahna
chahti hu... maa me abhi aur jeena chahti hu...
khush hua karte the papa dekh kar...
ab royenge mujhe yaad kar ke aksar...
unka u pyar se gale lagana... 
mere baad koun unhe gale lagaye ga aksar...
papa me apko akhri bar gale lagana chahti hu....
papa me abhi kuch din aur jeena chahti hu...
mera bhai jab bhi raat ko soyega chup chup ke mere liye royega...
bhai ek behen jaa rahi hai magar hazaro behno ka khayal rakhna ab soo rahi hu me apna aur sabka khayal rakhna :'(:'("
missing her ? :'(:'(:'(

° ॐ साईं •._.·° ॐ साईं •._.·° ॐ साईं •._.·° ॐ साईं
•._.·° ॐ साईं •._.·° ॐ साईं •._.·° ॐ साईं •._.·° ॐ
साईं •._.·° ॐ साईं •._.·° ॐ साईं •._.·° ॐ साईं •._.·
° ॐ साईं •._.·° ॐ साईं •._.·° ॐ साईं •._.·° ॐ साईं
•._.·° ॐ साईं •._.·° ॐ साईं •._.·° ॐ साईं •._.·° ॐ
साईं •._.·° ॐ साईं •._.·° ॐ साईं •._.·° ॐ साईं •._.·
° ॐ साईं •._.·° ॐ साईं •._.·° ॐ साईं •._.·° ॐ साई
|l ॐ साईं श्री साईं जय जय साईं ll
शुभ साईं रात्रि...ॐ साईं राम




ॐ साईं राम मित्रो

मित्रो आज उस बहिन के लिए ये पोस्ट डाला है जो अपनी जिन्दगी की जंग हार गयी है

जितना हो सके उतना शेयर करो सिर्फ हमारी उस बहिन के लिए परमात्मा उस बहिन की आत्मा को शान्ति दे

प्रम्तामा उस बहिन के परिजनों को जल्द से जल्द न्याय दे।। उसके परिवार इस दुःख की घडी मै हिम्मत दे
इश्वर से प्रार्थना है की वो उस बहिन को जल्द से जल्द इन्साफ दिलवाए







एक साधु किसी गांव से गुजरता था। उसका एक मित्र-साधु भी उस गांव में था। उसने सोचा कि उससे मिलता चलूं। रात आधी हे रही थी, फिर भी वह मिलने गया। एक बंद खिड़की से प्रकाश को आते देख उसने उसे खटखटाया। भीतर से आवाज आई, 'कौन है?' उसने यह सोचा कि वह तो अपनी आवाज से ही पहचान लिया जावेगा, कहा, 'मैं।' फिर भीतर से कोई उत्तर नहीं आया। उसने बार-बार खिड़की पर दस्तक दी उत्तर नहीं आया। ऐसाही लगने लगा कि जैसे कि वह घर बिलकुल निर्जन है। उसने जोरसे कहा, 'मित्र तुम मेरे लिये द्वार क्यों नहीं खोल रहे हो और चुप क्यों हो?' भीतर से कह गया, 'यह कौन ना समझ है, जो स्वयं को 'मैं' कहता है, क्योंकि 'मैं' कहने का अधिकार सिवाय परमात्मा के और किसी को नहीं है।'
प्रभु के द्वार पर हमारे 'मैं' का ही ताला है। जो उसे तोड़ देते हें, वे पाते हैं कि द्वार तो सदा से ही खुले थे !





तेरे दरबार में जब आता हूँ,
भीड़ में ठीक से दर्शन नही कर पाता हूँ,
तेरे नाम लेने से ही मैं शांति पाता हूँ,
इसलिए तेरे नाम के दर्शन सबको कराता हूँ ।।

▁ ▂ ▄ ▅ ▆ ▇ █ ॐ साई राम █ ▇ ▆▅ ▄ ▂ ▁




Har Gam Ke Baad Khushi Hai .......Har Dukh Ke Baad Sukh Hai
Jab Baba Ka Naam Zaban Pe Hai ....To Murad Hoti Jarur Puri Hai.



♥ SAI KE DARBAR MEIN TAQDIR BADAL JATI HAI ♥
♥ MATHE PE LIKHI HUI LAKIR BADAL JATI HAI ♥
♥ SUKH DUKH TO ATALHAI ♥
♥ USKI TASVEER BADAL JATI HAI ♥

♥ OM SAI RAM ♥ OM SAI RAM ♥ OM SAI RAM♥



दूसरों की निंदा करने की प्रवृत्ति से अन्य की हानि होने के साथ साथ स्वयं को भी नुकसान ही होता है

॥हरी ॐ॥एक विदेशी को अपराधी समझकर जब हरिपूर के राजा ने फाँसी का हुक्म दियातो उसने कुछ अपशब्द कह दिए राजा ने मंत्री से जो कई भाषाओ का जानकार था उससे पूछा यह क्या कह रहा है मंत्री ने गालिया सूनली थी पर उसने कहा महाराज यह आपको दुआए दे रहा है राजा यह सुनकर खुश हुआ पर एक अन्य मंत्री ने जो पहले वाले से ईर्ष्या करता था बोला महाराजयह आपको गाली दे रहा था दुआ नही यह मंत्री भी भाषा का जानकार था राजा ने पहले वाले मंत्री सेपूछा तो मंत्री ने हाँ मे उत्तर दिया इसपर राजा बोला तुमने इसे बचाने की भावना से झूठ बोला मानव धर्म को सर्वोपरि मानकर तुमने राजधर्म को पीछे रखा मे तुमसे खुश हुआ फिर विदेशी को मुक्त करते हुए बोला निर्दोष होने के कारण ही तुम्हें इतना क्रोध आया और मुझे गाली दी और मंत्री महोदय तुमने सच इसलिए बताया क्योंकि तुम उन मंत्री से जलते हो ऐसे लोग मेरे राज्य मे रहने योग्य नही है तुम यह राज्य छोड़कर चले जाओ ॥




सच्चे फनकार को फन के दम पर मिली उपलब्धि मे ही सच्चा संतोष मिलता है

॥हरीॐ॥ श्यामगढ़ के राजा के दरबार मे एक बहरुपया पहुँचा और उसने दक्षिणा मे दस रुपये की माँग की राजा बोला फनकार को उसके फन के प्रदर्शन पर इनाम दिया जाता है दक्षिणा नही बहुरुपिया ने स्वांग दिखाने के लिए कुछ समय माँगा और चला गया कुछ समय बाद नगर के बाहर एक चरवाहे ने एक पेड़ के नीचे एक जटाधारी बाबा को समाधि लगाए देखा उसने अपने साथियों और गाँव वालों को यह बात बताई धीरे धीरे यह बात राजा तक पहुँच गई तो राजा ने मंत्री को भेंट लेकरभेजा और आशीर्वाद कीप्रार्थना की पर बाबा आँखें बंद किए बैठे रहै जब राजा को बात पता चली तो वह खुद वंहा पहुँच गया पर बाबा आँखें बंद किए बैठे रहै तब राजा वहाँ से चल दिया अगले दिन बहुरुपिया राजमहल मे आया और अपने को बाबा होने वाली बात बताई तो राजा अचरज मे पड़ गया और बोला मैने सोने चाँदी के सिक्के भेजे पर तुमने नही लिए और देखा तक नही और अब दक्षिणा माँग रहे होबहुरुपिया बोला तब सारा वैभव बेकार था क्योंकि रूप की लाज रखनी थी पर अब फन का इनाम चाहता हूँ ॥




परवाह नहीं अगर ये ज़माना खफा रहे...!!
ऐ बन्दे दुआ ये मांग, " साईं" मेहरबान रहे ..!
साईं चरणों में कोटि कोटि नमन...




रखीं चरणां च सानू वी हजूर साईंयाँ
करीं साडा वी तूं हुण दुःख दूर साईंयाँ
असी पूजा पाठ दा ना कोई ढंग करदे
असी चज दा ना ज़िन्दगी च कम करदे
इक तैनू ही मनाया ए जरूर साईंयाँ
करीं साडा वी तूं हुण दुःख दूर साईंयाँ
साडे मण विच विषय ते विकार वसदे
असी करमां दे वाजों गुनागारदिसदे
तूं तां अल्ला दा ही दिसदांयें नूर साईंयाँ
करीं साडा वी तूं हुण दुःख दूर साईंयाँ
असी माया दे जंजाल विचफसे होए आं
असीं पापां दियां बेड़ियाँ च कसे होए आं
साडे पापां नू वी धोवीं तूँजरूर साईंयाँ
करीं साडा वी तूं हुण दुःख दूर साईंयाँ
रखीं चरणां च सानू वी हजूर साईंयाँ
करीं साडा वी तूं हुण दुःख दूर साईंयाँ
ॐ साईं राम ॐ साईं राम
ॐ साईं राम ॐ साईं राम
ॐ साईं श्री साईं जय जय साईँ
ॐ साईं श्री साईं जय जय साईँ




एक बार एक किसान ने अपने
पडोसी को भला बुरा कह
दिया, पर जब बाद में उसे अपनी गलती का एहसास हुआ तो वह एक संत के पास
गया.उसने संत से अपने शब्द
वापस लेने का उपाय पूछा.
संत ने किसान से कहा, ”
तुम खूब सारे पंख
इकठ्ठा कर लो , और उन्हें शहर के बीचो-बीच जाकर
रख दो .” किसान ने
ऐसा ही किया और फिर संत के पास पहुंच गया.
तब संत ने कहा , ” अब जाओ
और उन पंखों को इकठ्ठा कर के
वापस ले आओ”
किसान वापस गया पर तब तक सारे पंख हवा से इधर-उधर उड़ चुके थे.और किसान खाली हाथ संत के
पास पहुंचा. तब संत ने उससे कहा कि ठीक ऐसा ही तुम्हारे
द्वारा कहे गए शब्दों के साथ होता है,तुम
आसानी से इन्हें अपने मुख से निकाल तो सकते हो पर
चाह कर भी वापस नहीं ले सकते.

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